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________________ १÷ } अर्थात् ऋषभ कुलकर कालीन मनुष्यों को जब कच्चे धान्य बीजों से अजीर्ण होकर उदर पीड़ा होने लगी तभी उन्होंने कुलकर के आगे इसकी शिकायत की कि कच्ची औषधियां खाने से हमें उदर-दर्द हो रहा है। इस पर कुलकर ने धान्य-बीजों को हथेलियों में घिस कर साफ करने के बाद कमल पत्रों के पुर्टो में जल लेकर, बीज उनमें रख कुछ समय तक भीगने के बाद हाथों में लेकर खाने की सलाह दी। इस प्रकार भोजन करने से कुछ समय तक उन्हें राहत मिली, परन्तु कवी औषधि खाने के कारण कालान्तर में फिर अजीर्ण की शिकायत खड़ी हुई, तब वे कुलकर के पास जाकर अपना दुःख सुनाने लगे । उधर जंगल में वृक्षों के संघर्षण से अभि उत्पन्न हुआ, जिसे देख कर मनुष्य भयभीत होकर इसकी सूचना देने कुलकर के पास गये | कुलकर ने कहा अनि उत्पन्न हो गया है, इसलिये 'अब धान्य बीज जलती हुई आग के छोरों पर डालके पकने पर वाचो | मनुष्यों ने वैसा ही किया, परन्तु अभि में डाले हुए बीज सब जल गये । मनुष्यों ने कुलकर से कहा, वह स्वयं भूखा है और हम जो कुछ उसे देते हैं, वह स्वयं खा जाता है । हाथी पर बैठे हुए कुलकर ने कहा, उस तालाब में से कुछ गीली मिट्टी लायो । उन्होंने वैसा ही किया। कुलकर ने मिट्टी के पिण्डों को हाथी के कुम्भ स्थलों पर रख कर हाथों से थपथपा कर वर्त्तन का आकार बनाया, और उन्हें देते हुए कहा इनको धूप में सवा कर तेज आग में डालो, जब यह पक कर ठंडा हो जाय तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
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