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________________ ( १३ ) नामों का विशेष विवरण-१ मदाङ्ग वृक्षों से अकर्मक भूमिक मनुष्यों को मादक रस की प्राप्ति होती थी । २ भृङ्गाङ्ग वृक्षों से भृङ्गार कलश आदि वर्त्तनों का काम होता था । ३ त्रुटिताङ्ग वृक्षों से वादित्र संगीत का आनन्द मिलता था । ४ दीपाङ्ग वृक्षों से दीपक का-सा प्रकाश मिलता था । ५ ज्योतिरङ्ग वृक्षों से दूर तक फैलने वाली ज्योति निकलती थी। ६ चित्राङ्ग वृक्षों से रंग बे रङ्ग पुष्पमाल्यों का आनन्द लेते थे। ७ चित्ररसाङ्ग वृक्षों से षड्रसमय भोज्य पदार्थों की प्राप्ति होती थी ८ । मण्यङ्ग वृक्षों से मणिरत्न सुवर्णादिमय आभूषणों का लाभ होता था। ६ गेहाकार वृक्ष उनको रहने के लिए घर का काम देते थे। और १० अनाग्न्य वृक्ष उनका शरीर ढाँकने के लिए वस्त्र का कार्य करते थे। वत्तमान अवसर्पिणी समा के सप्त कुलकर ऊपर के निरूपण में हमने अनेक स्थानों पर कुलकर शब्द का प्रयोग किया है, परन्तु इनके व्यक्तिगत नाम तथा इनकी दण्ड नीति के विषय में कोई स्पष्टी करण नहीं किया । अतः यहां पर कुलकरों की संख्या, उनके नाम तथा उनकी दण्डनीति के विषय में समवायाङ्ग तथा आवश्यक नियुक्ति के आधार पर दिया हुआ उनका स्वरुप संक्षेप में निरूपित करेंगे। समवायाङ्ग सूत्रकार कहते हैं - "जम्बुहीवेणं भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए समए सत्त कुलगराहोत्था, तं जहा-पढ़मेत्थ विमल वाहण, चक्खुम जसम चउत्थ मभिचन्दे । तत्तोय पसेणईए, मरुदेवे चेव नाभीय" ॥ ३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
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