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अवज्ञा करेंगे और कटुवचन सुनावेंगे। हास्यों, भाषणों, कटाक्षों और सविलास निरीक्षणों से निर्लज कुल वधुए वेश्याओं कोशक्षण देंगी। श्रावक, श्राविका और दान शील तप भावात्मक धर्म की हानि होगी।
थोड़े से कारण से श्रमणों और श्रमणियों में झगड़े होंगे। धर्म में शठता और चापलूसी का प्रवेश होगा। झूठे तोल माप प्रचलित होंगे। बहुधा दुर्जन जीतेंगे, सजन दुःख पायेंगे।
विद्या, मन्त्र, तन्त्र, औषधि, मणि, पुष्प, फल, रस, रूप, आयुष्य, ऋद्धि, आकृति, ऊँचाई, और धर्म इन सब उत्तम पदार्थों का हास होगा, और दुष्पम दुषमा नामक छठे आरे में तो इनकी अत्यन्त ही हीनता हो जायगी । __प्रतिदिन क्षीणता को प्राप्त होते हुए, इस लोक में कृष्ण पक्ष में चन्द्र की तरह जो मनुष्य अपना जीवन धार्मिक बना कर धर्म में व्यतीत करेंगे उन्हीं का जन्म सफल होगा । ___ इस हानिशील दुष्पमा लमय के अन्त में-दुष्प्रसह आचार्य, फल्गुश्री साध्वी, नागिल श्रावक, और सत्य श्री श्राविका, इन चार मनुष्यों का चतुर्विध संघ रहेगा। विमल वाहन राजा और सुमुख अमात्य दुषमा कालीन भारतवर्ष के अंतिम राजा और अमात्य होंगे।
"दुष्षमा के अन्त में मनुष्य का शरीर दो हाथ-भर और आयुष्य बीस (२०) वर्ष का होगा । टुप्षमा के अंतिम दिन पूर्वाह्न
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