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सागरोपम का, पाँचवाँ इक्कीस (२१) हजार वर्ष का और छठा भी इक्कीस (२१) हजार वर्ष का होता है।
वर्तमान समय अवसर्पिणी समा का पञ्चम अरक है इसके अब तक चौबीस सौ चौरासी वर्ष बीत चुके हैं। समय हानिशील होने के कारण प्रतिदिन प्रत्येक पदार्थ में से सत्त्व घटता रहेगा, चतुर्थ और पञ्चम अरक का भगवान महावीर ने सभा के सामने जो वर्णन किया था, उसे हम यहां उद्धत करते हैं।
आपने कहा-तीर्थङ्करों के समय में यह भारतवर्ष धन धान्य से समृद्ध, नगर-प्रामों से व्याप्त स्वर्ग-सदृश होता है। तत्कालीन ग्राम नगर-समान, नगर देवलोक-समान, कौटुम्बिक राजा-तुल्य, और राजा कुबेर-तुल्य समृद्ध होते हैं। उस समय आचार्य चन्द्र समान, माता-पिता देवता समान, सास माता समान, श्वसुर पिता समान होते हैं । तत्काल्लीन जन-समाज धर्मा धर्मा-विज्ञ, विनीत, सत्य-शौच-सम्पन्न, देव-गुरु-पूजक, और स्वदार-संतोषी होता है । विज्ञान-वेत्ताओं की कदर होती हैं, कुल, शील तथा विज्ञान का मूल्य होता है। लोग-ईति, उपद्रव, भय,
और शोक से मुक्त होते हैं। राजा जिन-भक्त होते हैं, और जैन धर्म-विरोधी बहुधा अपमानित होते हैं ।
यह सब आज तक था। अब जब चौपन उत्तम पुरुष व्यतीत हो जायेंगे, और केवली, मनः पर्ययज्ञानी, अवधिज्ञानी, तथा श्रुतकेवली इन सब का विरह हो जायगा, तब भारतवर्ष की दशा इसके विपरीत होती जायगी। प्रतिदिन मनुष्य-समाज
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