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मेरे चारों तरफ सदा व्यायाम प्रमाण प्रभा मण्डल रहता है, मेरे शरीर की ऊंचाई सोलह हाथ की है, और मेरा आयुष्मान् सौ वर्ष का है ।
अन्तिम चातुर्मास्य में वैशाली के निकटवर्त्ती "वेलु" गांव में रोगमुक्त होने के बाद बुद्ध अपने शरीर की दशा वर्णन करते हुए अपने प्रधान शिष्य आनन्द से कहते हैं, आनन्द ! अब मैं अस्सी वर्ष का हो गया हूँ, मेरा शरीर जरा जीर्ण पुराने शकट की तरह ज्यों त्यों चलता है, इत्यादि बातों से यह तो निश्चित है कि निर्वाण के समय बुद्ध की अवस्था अस्सी वर्ष की थी, बुद्ध चरित्र लेखकों का भी यही मन्तव्यं है, फिर भी "बुद्धवंशों" में उनके मुख से अपना आयुप्रमाण सौ वर्ष का कहलाया है यह विचारणीय है, और विशेष विचारणीय तो उनका देहमान है । गौतम बुद्ध के समकालीन भगवान् महावीर तथा उनके प्रधान शिष्य इन्द्रभूति गौतम का देहमान जैन सूत्रों में सात हाथ का बताया है, तब उनके समकालीन गौतम बुद्ध अपना शरीर सोलह हाथ ऊँचा बताते हैं, इतिहासकार इस विषमता का कारण खोजेंगे तो उन्हें अवश्य सफलता मिलेगी । यह तो उदाहरण के रूप में दो चार बातों का निर्देश किया है बाकी बौद्ध ग्रन्थों में परस्पर विरुद्ध और अतिश - योक्तिपूर्ण बातों की इतनी भरमार है कि उन सब को लिख कर एक छोटा बड़ा ग्रन्थ बनाया जा सकता है । इस विषय की यहां चर्चा करने का प्रयोजन मात्र यही है कि बौद्ध लेखकों ने अपने पडौसी वैदिक जैन आदि सम्प्रदायों के सम्बन्ध में बहुत सी ऊट
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