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( ४८५ ) से कहा था "हे भिक्षुओं । मेरी कही हुई बातों पर ही निर्भर न रहना, परिस्थिति के वश तुम मेरे बताये गये नियमों में परिवर्तन भी कर सकते हो।" .. मौर्य सम्राट अशोक के समय तक राजगृह में व्यवस्थित किये गये बौद्ध साहित्य में बहुत सा परिवर्तन हो चुका था । भिक्षुओं ने अपने आचार नियमों को अनुकूल आने वाले बहुत से नये ग्रंथ बना कर पुराने ग्रन्थों में दाखिल कर दिये थे। कई नये ग्रन्थांश पुराने ग्रन्थों के अङ्ग बन चुके थे, परिणाम स्वरूप अशोक के समय में दुबारा व्यवस्थित किया गया । ___ यह सब होते हुए भी बौद्धपिटकों में प्रक्षेप आदि बन्द होना सर्वथा बन्द नहीं हुआ । इसका परिणाम यह है कि आज हम बौद्ध ग्रन्थों में अनेक एक दूसरी से विरुद्ध और अतिशयोति पूर्ण बातें पाते हैं।
बौद्ध धर्म के अभ्यासी और अनुयायी धर्मानन्द कौशाम्बी जैसे व्यक्ति बुद्ध के निर्वाण समय में बौद्ध भिक्षुओं की संख्या पांच सौ की बताते हैं तब "वाहीर निदान वर्णना' नामक बौद्ध-प्रन्थ बुद्ध के निर्वाण स्थान पर सात लाख बौद्ध भिक्षुओं का इकट्ठा होना बताता है । देखिये नीचे की पंक्तियां
"परिनिव्वुते भगवति लोकनाथे भगवतो परिनिव्वाने सन्निपतितानं सूत्तनं भिक्खुसतसहस्सानं संघत्थेरो, यस्मा महाकस्सपो सत्ताह परिनिव्वुते भगवति सुभहन बुडढपव्वजितेन अलं आवुसो मा सोचत्थ इत्यादि"
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