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सुमनसा मनुस्स सुमन मकुलानि दन्तवरणानि अह
मदासिं ।
भिक्खुनो पिण्डाय चरन्तस्स एसिकानं उण्णतस्मि नगरे वरे पुकते रम्मे ॥२६॥
अर्थ- मैंने अन्धक वृन्द ग्राम में आदित्यों के बन्धु भगवान् बुद्ध को कोलपाक का दान दिया, और ऋजुभूत में प्रसन्न चित्त से तेल से वघारा हुआ पीपर लहसुन और लामञ्जक से मिश्रित काजिक प्रदान किया ।
मैंने एसिको के पेराकत नामक रम्य नगर में भिक्षा भ्रमण करते हुए भिक्षु को इन्दीवर कमल में पुष्पों का गुच्छा प्रदान किया । एसिकों के पेराकत रम्य नगर में भिक्षार्थ भ्रमण करते हुए भिक्षु को मैंने तालाब के जल में उत्पन्न हुई नीले पत्रों वाली श्वेतमूलिका का दान दिया।
एसिकों के पेवत रम्य नगर में भिक्षा भ्रमण करते हुए भिक्षु को मैं ने प्रसन्न मन से दातुनों का दान दिया ।
ऊपर के पद्यों में लहसुन मिश्रित काञ्जिक बुद्ध को देने का निर्देश मिलता है, इससे जाना जाता है कि जैन वैदिक श्रमणों की तरह बुद्ध और उनके श्रमण लहसुन प्याज आदि खाने में दोष नहीं गिनते होंगे।
"मज्झिमनिकाय" में बौद्ध भिक्षु को पुष्पमाला गन्ध का त्यागी बताया है, तब "विमान वत्थु " में भिक्षु को इन्दीवर आदि
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