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( ५४४ ) का हा अधिक भ्रमण होता था । बौद्ध भिक्षु तब तक तक्ष शिला के निकट प्रदेश में पहुँच भी नहीं पाये थे। ___ अशोक के समय में बौद्ध धर्म भारत वर्ष में कुछ समय के लिये चमक उठा था, परन्तु चीन आदि प्रदेशों में यह प्रतिदिन प्रबल हो रहा था और वहां के विद्वान् भिक्षु बौद्ध साहित्य की खोज और प्राप्ति के लिये आते रहते थे। ईशा के पूर्व की पहली शताब्दी तक भारत के बाहर और भारत के द्वार रूप गान्धार पुरुषपुर (पेशावर) तक्षशिला आदि स्थानों में बौद्ध भिक्षु हजारों की संख्या में फैल गये थे । चन्द्रगुप्त के समय में इस भूमि में जितना ब्राह्मण संन्यासियों का प्राबल्य था उससे भी कहीं अधिक बौद्ध भिक्षु दृष्टिगोचर होते थे। इसके सम्बन्ध में जैन सूत्र वृहत्कल्प की निम्नोद्धत गाथायें प्रमाण के रूप में दी जा सकती हैं। पाडलि मुरण्डदूते, पुरिसपुरे सचिव मेलनाऽऽवासो। भिक्खू असउण तइये, दिणम्मिरन्नो सचिव पुच्छा ॥२२६२ निग्गमणं च अमच्चे, सब्भावाऽऽइक्खिये भणइदयं । अंतो वहिं च रत्था, नऽहरंति इहं पवेसणया ॥
अर्थः-पाटलिपुत्र से राजा मुरुण्ड ने अपना दूत पुरुषपुर (पेशावर ) के राजा के पास भेजा, दूत वहां के राजमन्त्री से मिला, मन्त्री ने दूत को ठहरने के लिये मकान दिया और राजा से मिलने का टाइम सूचित किया, पर दूत राजा से न मिला, दूसरे तथा तीसरे दिन भी दूत राजा से न मिला, तब राज
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