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भिक्षु को सिंगी नमक भिक्षा में लेना कल्पता है । द्वयगुलकल्प कल्पता है। ग्रामान्तर कल्प कल्प्ता है। आवास कल्प कल्पता है। अनुमति कल्प कल्पता है । प्राचीण कल्प कल्पता है । अमथित कल्प कल्पता है । जलोगी पीना कल्पता है। पानी समीप में न होने पर भी वैठना कल्पता है । सोना चान्दी रखना कल्पता है। ये दश नियम हैं। :
मौर्य काल में बौद्धधर्म का प्रचार भगवान बुद्ध के निर्वाण से दो सौ अठारहवें वर्ष में मौर्य राजकुमार अशोक का राज्याभिषेक हुआ । बाद में अशोक बौद्ध भिनुओं के उपदेश से बौद्ध धर्म का उपासक बना और पाटलिपुत्र नगर में बौद्ध भिक्षु भिक्षुणियों का सम्मेलन किया । इस सम्मेलन में उपस्थित भिक्षु भिक्षुणियों की वास्तविक संख्या क्या थी यह कहना कठिन है, क्यों कि बौद्ध ग्रन्थों में इस घटना के वर्णन में राई का पर्वत बना दिया है, फिर भी हम यह अनुमान कर सकते हैं कि बुद्ध के निर्वाण समय में उनके संघ में जो भिक्षु संख्या थी, उससे इस समय के संघ से अधिक ही होगी क्योंकि बुद्ध के समय में उनका अनुशासन कड़क और भिक्षुओं के पालनीय नियम भी कड़े थे। परन्तु सौ वर्ष के बाद वैशाली में कुछ नियम शिथिल कर दिये गये थे जिससे बौद्ध भिक्षु का जीवन विशेष सुखशील बन गया था। इस कारण तब से भिक्षु संख्या अधिक प्रमाण में बढ़ी होगी इस में कोई शङ्का नहीं है।
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