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( ४३४ ) मानना है कि उस समय पांच सौ से अधिक बौद्ध भिक्षु नहीं होने चाहिए, क्योंकि निर्वाण के बाद बुद्ध के उपदेशों को व्यवस्थित करने के लिये सर्व प्रथम बौद्ध भिक्षु राजगृह में मिले थे, और उनकी संख्या पाँच सौ की थी। कुछ भी हो पर यह तो निश्चित है कि पिछले बौद्ध साहित्य में हद से ज्यादा अतिशयोक्तिपूर्ण प्रक्षेप हुए हैं, जिनका पृथकारण करना असम्भव है।
बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को अन्तिम यह हिदायत की थी कि मैंने संघ के लिये धर्माचार के सम्बन्ध में जो नियमोपनियम बताये हैं, उनमें समय के अनुसार परिवर्तन कर सकते हो । बुद्ध की इस छूट का प्रभाव बहुत बुरा पड़ा । बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुए एक सौ वर्ष हुए थे, वैशाली वज्जी पुत्र भिक्षुओं ने वैशाली में अपने आचार मार्ग में क्रान्ति करने वाले दश नये नियम बनाये । जो निम्नलिखित हैं
"वस्संसत परिनिव्वुते भगवती वेसालिका वज्जिपुत्तका भिकखू वेसालियं-कापति सिंगिलोण कायो, कापति द्वगुल कप्पो, कप्पति गामंतर कापो, कप्पति आवास कप्पो, कापति अनुमतिकप्पो, कप्पति आचीण कापो, कप्पति अमथित कायो, कापतिजलोगिं पातुं, कम्पति अदकं निसीदनं कप्पति, जात रूप रजतं पि, इमानी दस वथ्थूनि दीपेसु" ।
अर्थः--भगवान निवार्ण प्राप्त हुए सौ वर्ष होने पर वैशालिक वज्जीपुत्र भिक्षुओं ने वैशाली में;
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