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कात्यायन कहते हैंद्रव्य स्त्री मांस संपर्कान्मधुमाक्षिकलेहनात् । विचारस्य परित्यागात्, यतिः पतनमृच्छति ॥
अर्थ-द्रव्य संग्रह से, मांस भक्षण से, स्त्री प्रसङ्ग से, मधु चाटने से और विचार के परिवर्तन से यति पतन की तरफ जाता है।
यम कहते हैंभिक्षुर्द्धिभोजनं कुर्यात्कदाचिद् ग्लान दुर्बलः । स्वस्थावस्थो यदा लोल्यात्, तदा चान्द्रायणं चरेत् ॥
अर्थ-बीमार और दुर्बल भिक्षु कदाचित दो बार भोजन करे यदि स्वस्थ होने पर भी रस लालसा से दो बार खाय तो शुद्धि के लिए चान्द्रायण व्रत करे ।
संन्यास माहात्म्य बिरगु कहते हैं :एक-रात्रोषितस्यापि, या गतिरुच्यते । न सा शक्या गृहस्थेन, प्राप्तु क्रतुशतैरपि ।। अर्थः-एक दिन भी संन्यास मार्ग में व्यतीत करने वाले संन्यासी की जो गति होती है, वह गृहस्थ सैकड़ों यज्ञों द्वारा भी पा नहीं सकता।
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