________________
भिक्षाटन काल भिक्षाग्रहण योग्य कुल
भिक्षु को किस समय भिक्षाटन करना चाहिये इस विषय में कराव कहते हैं।
विधूमे सनमुशले, व्यङ्गारे भुक्तवज्जने । कालेऽपराह्न भूयिष्ठ, भिक्षाटनमथाचरेत् ।।
अर्थः-बस्ती में धूआँ निकलना बन्द हो जाय, मुशल खडा कर दिया जाय, अङ्गार निस्तेज हो जाय, लोक भोजन कर चुके और अपराह्न समय लगने पर भिनु भिक्षाचर्या को निकले ।
मनुजी कहते हैं यति एक बार ही भिक्षाटन करे। एककालं चरेद् भैसू, न प्रसज्येत विस्त रे । भैने प्रसको हि, यतिविषयेष्वपि सज्जति ।।
अर्थः-यति एक बार ही भिक्षा भ्रमण करे अधिक नहीं, जो भिक्षा के विस्तार में लगता है वह कालान्तर में विषयासक्ति में भी फंस जाता है। ___ इस विषय में वसिष्ठ स्मृतिकार का कथन यह है
"ब्राह्मणाकुने वा यल्लभेत् तद् भुञ्जीत सायं मधुमांसर्पिः परिवर्जम्" ___ अर्थ:--ब्राह्मण कुल में जो मिले उसीका भोजन करले, मधु, मांस, घृत को भोजन में कदापि ग्रहण न करे । ___ यद्यपि उपयुक्त उल्लेख में ब्राह्मण कुल का निर्देश किया गया है तथापि श्रति के "चतुषु वर्णेषु भैक्षचर्य चरेत्" इस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org