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मीमांसक दर्शनानुयायी और नारायण को अपना इष्ट देव मानने वाले हैं । इनका जाप मन्त्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" यह है । इनको नमस्कार करने वाले "नमो नारायणाय" यह बोलते हुए नमस्कार करते है । उसके प्रत्युत्तर में ये " नारायणाय नमः " यह पद बोल कर उसका स्वीकार करते हैं । इन नारायण भक्तों में त्रिदण्डी और एक दण्डी दोनों प्रकार के सन्न्यासी होते हैं ।
शैव संन्यासी
मीमांसक दर्शनानुयायी संन्यासी जैसे नारायण के भक्त हैं, वैसे ही योग, वैशेषिक, आक्षपादिक, दर्शनों के अनुयायी संन्यासी शिव को अपना आराध्य देव मानते हैं,
और “ॐ नमः शिवाय " इस षडक्षर मन्त्र का जाप करते हैं । ये कोपीन लगाते है कई नंगे भी रहते हैं ।
इस प्रकार दर्शन विभाग के अनुसार संन्यासियों का द्वैविध्य होता है, और त्रिदण्डी एक दण्डी के भेद से भी वे दो प्रकार के होते हैं ।
दर्शन के लिहाज से सांख्य दर्शन के अनुयायी संन्यासियों का एक तीसरा विभाग है, जो सब से प्राचीन माना जाता है । सांख्य संन्यासी पच्चीस तत्वों का मानने वाले हैं । अतिपूर्व काल में ये वेदों को और ईश्वर को नहीं मानते थे । इसी कारण से
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