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कुटीचर मठ में रहता है और यजमानों का परिग्रह रखता है ।
बहूदक नदी के तट पर रहता है और नीरस भिक्षा का भोजन करता है।
हंस देशों में भ्रमण करता है, और तप से शरीर का दमन करता है। __जो परम हंस सन्न्यासी होता है उस का आचार अब कहता हूँ, परमहंस ईशानी दिशा को सम्मुख रख के गमन क्रिया करता है
और जहाँ शरीर थक जाय वहाँ प्रायः उपवेशन कर के ब्रह्मचिन्तन करता हुआ समाधि में लीन होता है। टिप्पणी-षड्दर्शन समुच्चयकार राजशेखर सूरी ने चार सन्यासियों का जो वर्णन दिया है उस में पहला संन्यासी कुटीचर कहा है परन्तु वैदिक साहित्य में सर्वत्र कुटीचक यही नाम उपलब्ध होता है । बहूदक नदी तट पर रहता है ये बात स्मृति आदि में नहीं पायी जाती है, और परम हंश को ऐशानी दिशा को लक्ष्य करके चलता रहने की बात भी वैदिकसाहित्य में देखने में नहीं आई फिर भी षड्दर्शन समुच्चयकार ने ये बातें निराधार तो नहीं लिखी होंगी, क्यों कि लेखक दर्शन शास्त्र के प्रखर विद्वान थे। इससे अनुमान होता है कि इन्होंने भिन्न भिन्न का सांप्रदायिक ग्रथों के आधार से लिखी होंगी।
दो प्रकार के संन्यासी सन्यासियों के उपर जो चार प्रकार बताये गये हैं, वे सभी
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