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अभयदायी ब्राह्मण अभयं सर्वभूतेभ्यो, दत्वा चरति यो द्विजः । तस्यापि सर्वभूतेभ्यो, न भयं जातु विद्यते ॥१॥
"वसिष्ठ स्मृति" अर्थः-सर्व प्राणियों को अभयदान देकर जो ब्राह्मण पृथिवी पर फिरता है, उसको सर्व प्राणियों से कहीं भी कोई भय नहीं होता।
ऊपर लिखित पद्यों में ब्राह्मणों के उत्तम गुण और लक्षणों का किञ्जित् निरूपण किया है। ऐसे गुण लक्षण समन्वित ब्राह्मण गृहाश्रमी होते हुए भी ऋषि कहलाते और बड़े बड़े राजा तक उनके चरणों में शिर झुकाते थे, और उन्हीं का बनाया हुआ शास्त्र धार्मिक सिद्धान्त बन जाता था।
जिस प्रकार ब्राह्मणों ने अपने ग्रन्थों में गुणवान् ब्राह्मणों की प्रशंसा की है, उसी प्रकार गुणहीन और ब्राह्मणत्व विरुद्ध कर्म करने वाले ब्राह्मणों की निन्दा भी की है।
अत्रिस्मृति में ब्राह्मणों को उनके कर्मानुसार दश उपमाओं से वर्णित किया है। देवो मुनिर्द्विजो राजा, वैश्यः शूद्रो निषादकः । पशुम्लेंच्छोऽपि चाण्डालो, विप्रा दशविधाः स्मृताः ॥३६०॥
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