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( ३११ ) लगते हैं । इन दो सौ दिनों में भोजन के दिन पचीस होते हैं, शेष एक सौ पचहत्तर दिन उपवास के होते हैं । इसी प्रकार चारों परिपाटियों के कुल दिवस आठ सौ होते हैं। जो दो वर्ष, दो मास, बीस दिन के बराबर होते हैं। इस पूरे तप में सात सौ दिन उपवासों के और एक सौ दिन पारणों के होते हैं ।
भद्रतपों का कुछ विवरण लघु सर्वतो भद्र महा सर्वतो भद्र, और भद्रोत्तर तप जो ऊपर लिखे हैं, उनके नामों के विषय में कुछ विवेचन करना आवश्यक प्रतीत होता है।
इनके नामों में आया हुआ भद्र शब्द कल्याण वाचक है, और सर्वतः यह शब्द दिशाओं की प्रतीति कराता है।
लघु तथा महा सर्वतो भद्र की आराधना करने वाले श्रमण तप की प्रथम परिपाटी में पूर्व दिशा के उत्तर छोर पर किसी निर्जीव पदार्थ पर दृष्टि स्थिर कर एक एक दिन ध्यान में खड़े रहेंगे। पारणा करके कुछ दाहिनी तरफ हट कर दा दो दिन उसी प्रकार ध्यान करेंगे। दो उपवासों का पारणा करके तघु तप वाले पूर्व दिशा के मध्य भाग में और महा तप वाला पूर्व दिशा के तृतीय सप्तमांश पर खड़ा रहकर तीन दिन तक उक्त प्रकार से ध्यान करेंगे। लघु वाला मध्य से कुछ दाहिनी तरफ तथा महातप वाला पूर्वा के मध्य भाग में खड़ा रह कर चार दिन तक उक्त प्रकारका ध्यान करेगा। इन उपवासों के पारणे कर लघुतप वाला अग्निकोण के
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