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( २८५ ) कराया करते थे, यह उपर कहा जा चुका है। इसके अतिरिक्त श्रमण अपने समुदाय में से पांच प्रकार की सभाओं का निर्माण करके श्रमणों को सूत्र पाठन के साथ साथ विशेष प्रकार की योग्यता प्राप्त कराया करते थे, जिसका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जाता है।
पांच परिषदें पठित तथा अभ्यासी श्रमणों में से पांच प्रकार की परिषदें स्थापित की जाती थीं । जिनके नाम तथा कर्तव्य निम्नोद्धत कल्प भाष्य की गाथाओं से ज्ञात होंगे। श्रावास गमादीया सुत्तकड पुरंतिया भवे परिसा । दसमादि उरिम सुया, हति उच्छतंतिया परिसा ॥३-४॥ लोहय-वेक्ष्य सभाइयेसु, सत्थेसु जे समो गाढा । स समय-पर समय विमारया य कुमलाय बुद्धिमती ॥३८॥ आसन्नपती भत्त खेय परिम्सम जंतो तहा सत्थे । कह मुत्तरं च दाहिसि, अमुगो किर अागतो वादी ॥३८६॥ पुव्वं पच्छा जेहिं सिंगणादि तविही समणुभूतो । लोए वेद समाए कया गमा मंति परिसाउ ॥३८७॥ गिडया से अन्य सत्थेहिं कोविया के समण भावम्मि । को लुसिंह भूयं तु सिंग नादि भवे कज्जं ॥३८८॥ तं पुण चेइय नासे तहव्यविणासणे दुविह भेदे । मला वहिवोच्छेदे, अभिवायण-गंध-घायादी ॥३८॥
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