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________________ ( २७६ ) निष्पक्षता का विश्वास दिला कर वहां बुलाते । इस पर वह सभा में आ जाता तो उसके सम्बन्ध में उचित कार्यवाही करके दण्ड प्रायश्चित्त आदि द्वारा झगडा निपटा दिया जाता था, परन्तु अपराधी के हाजिर न होने अथवा संघ का दिया हुआ न्यायसङ्गत फैसला न मानने की अवस्था में उसे संघ से बहिष्कृत उद्घोषित किया जाता था, तब से उसका किसी भी कुल ओर गण से सम्बन्ध नहीं रहता, और न ससे किसी भी प्रकार के सघ समवसरण में आने का अधिकार ही रहता । श्रमणों का श्रृताध्ययन श्रमण-गण अपने शिष्यों को लौकिक विद्याओं के अतिरिक्त उनको आगम श्रुत पढ़ाने के लिये भी सुन्दर व्यवस्था रखते थे । नव दीक्षित श्रमण प्रथम अपने आचार विषयक श्रुत का अध्ययन करता और साध्वाचार में प्रवीण बनता फिर उसको विधि पूर्वक उत्तरोत्तर आगम श्रत की शिक्षा दी जाती थी। ___ आगम श्रुत से हमारा अभिप्राय अङ्ग सूत्रों से है, और अङ्ग सूत्र निर्ग्रन्थ प्रवचन में बारह माने गये हैं । जो शास्त्रीय परिभाषा में “द्वादशाङ्ग गणि पिटक” इस नाम से पहिचाने जाते हैं । गणि पिटक के बारह अङ्ग सूत्रों के नाम निम्न लिखित हैं आयारो, सूयगडो, ठाण, समवाओ, विवाह पन्नत्ति, नायाधम्म कहाअो, उपासग दसाओ, अंतकडदसाओ, अरगुत्तरोव वाइय दसाओ, पन्हा वागरणं, विवाग सुरं, दिट्ठिवाओ । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
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