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हो, जिसमें अस्थि (गुठली ) हो, करणुक ( छिलके आदि) और बीज आदि हो, उसे गृहस्थ वांस की टोकरी से वस्त्र से अथवा बालों से बनाये हुए छानने के उपकरण द्वारा उनको मसल कर चारों ओर से दबा कर छान के दे तो अन्य प्रासुक जल की प्राप्ति होती हो तो वैसा प्राक पानी न ले ।
पानी पीने सम्बन्धी नियम
दश बैंकालिक तथा आचाराङ्ग सूत्र के आधार पर हमने साधुओं के ग्राह्य जलों का वर्णन ऊपर दिया है. अब हम यह दिखायेंगे कि किस प्रकार का जल किस प्रकार की तपस्या करने वाले साधु के काम में आता था ।
वासावासं पज्जोस वियरस निच्च भक्तियस्स भिक्खुस्स कम्पति सव्वाई पारगाई पडिगाहित्तए वासावासं पज्जोस विदस्स चउत्थ भक्तिस्स भिक्खुस्स कपंति तओ पाएगाई पडिगाहित्तए तं जहा
ओसे इमं संसे इमं चाउलोदकं वासावासं पज्जोम वियरस छट्ट भतियरस भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडिगाहित्तए । तं जहा - तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, वासावासं पज्जोस वियरस अट्टमभत्तियस्स भिक्खुरस कप्पंति तो पारण गाइ पडिगाहित्तए, तं जहा - आयामे वा, सोवीरे वा, सुद्ध वियडे वा, वासावासं पज्जोस बिस्स विगिट्ट भन्तियस्स भिक्खुरस कप्पइ एगे उसि वियडे पडिगाहित्तए सेऽवियणं असित्थे, नो वियणं ससित्थे वासावासं पज्जोस वियरस भत्तापडिया इक्खियस्स भिक्खुरस कप्पइ एगे
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