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( २७० ) लिंग पाण० १३, मुद्धिया पाण० १४, दालिम पाण० १५, बज्जूर पाण० १ , नारियर पाण० १७, करीर पाण- १८, कोल पाणः १६, आमलय पाण- २०, चिंचा पाण८ २१, अन्नयर वा तहप्प गारं पाणग जात स अद्वियं, सकगुयं सबीयगं असज्जए भित्र पडियाए, छब्बेण वा दूसेण वा बालगेण वा आविलियाण परिवीलियारण परिसावियाण आहह दलइजा तहप्पगारं पाणगजायं अफा० लाभे संते तो पडिगाहिज्जा ।। सू० ४३ ।।
(आचारांग द्वितीय श्रत स्कन्ध पृ० १४७ ) अर्थ-वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी उस पानक जात को जाने जैसे-आम्रपानीय ( आम की गुठलियां तथा उसके छिलके को धोकर बनाया हुआ पानी ) आम्रातक पानीय,( अमरोरे को धोकर अचित्त किया हुआ पानी ) कपित्थ पानीय, ( कैथ फल के गूदे से अम्ल बना हुआ पानी) मातुलिंग पानीय ( बिजोड़ा निम्बू के रस से अम्ल बनाया हुआ पानी ) मृट्ठीका पानीय (द्राक्षाओं को पानी में भिगो कर छाना हुआ पानी) दाडिम पानीय ( दाडिम का रस अगर शरबत मिला कर तैयार किया गया पानी ) खजूर पानीय (खजूरों को पानी में धोकर तैयार किया हुआ पानी ) नारिकेरल पानीय (कच्चे नारियल में से निकाला गया पानी) करीर पानीय ( पक्के केरों को जल में मसल कर तैयार किया पानी, कोय पानीय (वेरों के चूर्ण से बनाया हुआ अम्ल जल आमलक पानीय ( आमले की खटाई से अम्लता प्राप्त पानी, अम्लिका पानीय ( इमली का पानी ) इस प्रकार का अन्य भी कोई पानी
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