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श्रावक दूध, दही, घृत आदि प्रशस्त विकृतियां ग्रहण करने के लिये आग्रह पूर्वक निमन्त्रण करते हों तो प्रशस्त विकृतियों को ग्रहण
साधु को कारण विशेष से शुभ विकृतियां ग्रहण करने की आज्ञा है, परन्तु निन्दित विकृतियां ( मधु मांस मदिरा ) खास कारण से ही ग्रहण की जाय । जो शारीरिक बाह्य रोगों पर औषध के रूप में बरती जाती हों।
तब गृहस्थों के आग्रह से भी जो बिकृतियां दूध, दही और पकान आदि असंचयिक हैं, उन्हें ग्रहण करें, परन्तु संचयिक विकृतियों को न लें । घृत तेल मक्खन आदि पथ्य विकृतियां हैं, उनको न लें, क्योंकि उनका क्षय हो जाने पर आवश्यकता के समय इनकी प्राप्ति दुर्लभ हो जायगी, इस कारण से उक्त संयिक विकृतियों को न लेना चाहिए। यदि श्रद्धावान् गृहस्थ उनके लिये बहुत ही आग्रह करें, तो उनको कहना चाहिए कि जब इन विकृति द्रव्यों की आवश्यकता होगी तब इन्हें लेंगे । बाल, ग्लान, (बीमार) वृद्ध और शैक्ष ( ज्ञानाभ्यासी तथा आचार मार्ग की शिक्षा प्राप्त करने वाला साधु ) आदि के लिये इन विकृतियों की बहुत आवश्यकता होती रहती है, और अभी समय बहुत पड़ा है। उस समय श्रावक उसे कहे आप चारों महीना इन्हें ग्रहण करेंगे, तब भी ये समाप्त न होंगी, तब विकृतियों की बहुलता और देने वालों का आग्रह जानकर इन द्रव्यों को ग्रहण करें। इस प्रकार संचयिक विकृतियां भी यतना से ग्रहण की जाती हैं । जिस प्रकार उन
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