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विहार चर्या पट निकाय ---
पुढवी जीवा पुढा मता, आउजीवा तहा गणी बाउ जीया पुढो सत्ता, तण स्क्वा मवीयणा || ग्रहावरा तसा पाणा, एवं छक्काय आहिया । एतावा जीवकास, गावरे कोई विज्जई । मव्वाहि अराजुलीहि, मलि में परिले हिया । मुब्वे अक्कंत दु:खाया, अतो सब्वे न हिंसया ।।६।।
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अर्थ ---पृथ्वीकाय के जीध पृथ्वी पर रह हाए जीवा से पृथक हैं, 'काय और अनिकाय के जीव भी इन पर देखे जाने वाले चलते फिरते जीवों से भिन्न होते हैं । इसी प्रकार वायु तथा हरियाली वनस्पतियों के जीव उन पर रंगने वाले कीट पतङ्गों से भिन्न होते हैं।
इनके अतिरिक्त छठा ऋस (चलने फिरने वाले) जीवों का निकाय है । इन छः निकायों के अतिरिक्त, और कोई जीव-निकाय नहीं
बुद्धिमान निम्रन्थ भितु सर्व उपायों से इमको दृष्टि में रक्ख, क्योंकि सर्व निकाय के प्राणी दुग्न को नहीं चाहते और सब भरण से डरते हैं, अतः किसी को पीडित न करे, न जनकी हिंसा करे ।।
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