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( १६१ ) अर्थ-वर्षा निवास रहे हुए निग्रंथ निर्ग्रथिनियों को जो हृष्ट पुष्ट शरीर निरोग और वलिष्ठ शरीर वाले हैं, ये नवरस विकृतियां वार वार लेनी नहीं कल्पती है, वे रस विकृतियां ये हैं, तीर (दूध) दधि (दही) नवनीत (मक्खन) सर्पिष (घी) तैल, गुड, मधु (शहद) मद्य (सन्धान जल) मांस (पक्वान्न)
सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र में नक्षत्र भोजन किस नक्षत्र के दिन किस प्रकार का भोजन करके जाने से कार्य सिद्ध होता है, इस बात को लेकर अट्ठाइस नक्षत्रों के भोजन बताये गये हैं । जो नीचे उद्धत करते हैं
८-"ता कहं ते भोयणा आहिताति बदेज्जा १ ता ए एसिणं अट्ठाविसाए णं णक्खताणं१–कत्तियाहि दधिणा भोच्चा कज्जं साधियति । २-रोहिणीहिं ससमसं भोच्चा कज्ज साधेति । ३-संठाणाहि मिगमंसं मोच्चा कज्ज साधिति । ४-अहदाहिं णवरणीतेन भोचा कज्ज साधिति । ५-पुणब्बसुनाऽथ बतेण भोच्चा कजं साधिति । ६-पुस्सेणं खीरेण भोच्चा कज्जं साधिति । ७-अस्सेसाए दीवगमंसं भोच्चा कज्ज साधेति । ८-महाहिं कसोति भोच्चा कज्ज साधेति । ६-पुव्वाहिं फरगुणीहिं मेदकमंसं भोच्चा कज्ज साधेति । २०-उत्तराहिं फग्गुणीहिं णक्खीमंसं भोच्चा कज्जं साधेति ।
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