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( १५६ ) अर्थ-मांस खाने वालों से तथा मत्स्य खाने वालों से बाहर निकले हुए लोगों के यहाँ से अशन ( भोज्य ) पान (पेय) खादिम ( मेवा फल आदि ) स्वादिम ( चूर्ण पान तम्बोलादि ) ग्रहण करे तो प्रायश्चित का भागी हो।
निशीथाध्ययने एकादशोदेशे ४-"मंसाईयं वा मच्छाइयं वा मंस-खलं वा मच्छ-खलं वा आहेणं वा पहेणं वा सम्मेलं वा हिंगोलंवा अन्नयरं वा तहप्पगारं विरूप-रूपं हीरमाणं पे हाए ताए आसा ए ताए पिवा साए तं रयणि अन्नत्थ उवाइणा वेइ" - अर्थ-मांसादिक, मत्स्यादिक, मांस निर्माण स्थान, मत्स्य निर्माण स्थान, आहेण ( विवाह के अनन्तर वधू का प्रवेश होने पर वर के घर दिया जाने वाला ) भोज, पहेण ( वधू को लेजाने के समय उसके पितृघर में दिया जाने वाला) भोज, सम्मेल (कौटुम्बिक अथवा गोष्ठी) भोज, हिंगोल ( मृतक भोजन अथवा पक्ष आदि की यात्रा के निमित्त दिया जाने वाला) भोज, तथा 'नसे अतिरिक्त इसी प्रकार के विशेष भोजनारम्भों में तैयार किया हुआ खाद्य पक्वान्न इधर उधर ले जाया जाता देखकर उसे प्राप्त करने की आशा से उसे खाने की तृष्णा से श्यय्यातर का घर छोड़कर उस रात्रि को अन्यत्र स्थान में जाकर विताये तो प्रायश्चित्त का भागी हो।
दशवकालिक पिण्डैषणाध्याये प्रथमोद्देश के
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