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पाण्डुरो वर्णतद्वतोः । अर्थात्-पाण्डुर यह नाम श्वेत वर्ण और श्वेत वर्ण वाले का होना। __इत्यादि अनेक उदाहरणों से पूर्व काल में पदार्थों के नाम वर्ण के नामानुसार प्रसिद्ध हो जाते थे । प्राण्यंग मांस रक्त वर्ण का होने से फल मेवाओं के रक्तवर्ण-गर्भ भी मांस कहलाते थे । गुड से बना सीरा, लापसी, और कुछ मिठाइयां जो रक्त वर्ण लिये होती थी, वे भी मांस के नाम से पहचानी जाती थी । परन्तु जिन पदार्थों में रक्त अथवा पीत वर्ण विल्कुल नहीं होता उनको रक्तवर्ण देकर बनाने वाले मांस का रूप दे देते थे। यह पद्धति क्षेमकुतूहल ग्रन्थ के निर्माण समय तक प्रचलित होगी। ऐसा उक्त ग्रंथ के निम्नोद्धृत श्लोक से जाना जाता है----
वर्णस्य करणे देयं, कुंकुमं रक्तचन्दनम् । ताम्बूलं यत्र यद्य क्त, तच्च तत्र प्रयोजयेत् ।।६४॥
क्षेम कुतूहल ) अर्थात्-खाद्य पदार्थ को रंग देने में केशर, रक्त चन्दन, और नागरवेल के पत्ते का उपयोग करना चाहिए। जिस पदार्थ के लिए जो रंग अनुरूप हो उसे उसी रंग से रंगना चाहिए।
वनस्पत्यंग मांस के सम्बन्ध में हमने यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि प्राणधारियों के शारीरिक अवयव: जिन नामों से पहिचाने जाते थे, उन्हीं नामों से वनस्पतियों के भिन्न भिन्न अब
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