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"अमर कोष" जो कि विद्यमान सर्व शब्द कोशों में प्राचीन है पञ्चमी शताब्दी की कृति है, उसमें मांस के छः नाम मिलते हैं । जो नीचे लिखे जाते हैं"पिशितं तरसं मासं पललं क्रव्यमामिषम्"
(अमरकोश ) अमर कोश के टीकाकार भानुजिदीक्षित मांस के उक्त नामों की निम्न प्रकार से व्याख्या करते हैं । __ "पिंशति" पिश अवयवे (तु. प. से.) "पिशेः किच" ३।३।७४ इतीतन् । पिश्यते स्म वा क्तः (३।२।१०२)
पिश धातु अवयवार्थक है । इससे इतन् प्रत्यय लगने से पिशित शब्द बना । अथवा पिशित शब्द पिश् धातु से क्त प्रत्यय लगने से भी बन सकता है। __ तरो बलमस्त्यस्मिन् “अर्श आद्यच्" ( ४:१।१२६) तरस शब्द बल वाचक है इस से अच् प्रत्यय लगाने से तरस् शब्द बनता है
मन्यते "मन ज्ञाने" (दि. आ० अ० ) "मने दीर्घश्च" ( उ० ३।६४ ) इति सः।
मन् धातु ज्ञानार्थक है इससे स प्रत्यय लगने और आदि स्वर के दीर्घ होने से मांस शब्द बनता है।
पलति पल्यते वा अनेन वा । “पल गतौ' ( भ्वा० ५० से०) "वृषादिभ्यश्चित" ( उ० १।१६ ) इति कलः ।
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