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इस प्रकार के उल्लेख से ध्वनित होता है कि वेद काल में श्राम शब्द सामान्य मांस में प्रयुक्त होता होगा, अन्यथा गालव सिताम शब्द से श्वेत मांस अर्थ नहीं बताते ।
वैदिक निघण्टु में मांस शब्द अथवा मांस का अन्य कोई नाम नहीं मिलता।
जैन तथा बौद्ध सम्प्रदाय के प्राचीन सूत्रों में आने वाले श्राम गन्ध शब्दों के आम इस अवयव का भी मांस अर्थ में ही प्रयोग किया गया है । इस से प्रतीत होता है कि आज से ढाई हजार वर्ष और उसके पहले मांस, पिशित, आम और ऋविष् ये चार शब्द मांस के अर्थ में प्रयुक्त होते थे ।
यास्क-निरुक्त-भाष्य में मांस शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है___"मांसमाननं वा मानसं वा मनोऽस्मिन् सीदति वा” ऐसे लिखकर यह बताया गया है कि मांस मेहमान के लिये खाने का एक उत्तम भोजन होता है, और वह मानता है कि गृहपति ने हमारा बड़ा मान बढ़ाया।
मांस के नामों में वृद्धि ईसा के पूर्व षष्ठी शताब्दी तक मांस के चार ही नाम प्रचलित थे, मांस, पिशित, आम, और क्रविष् इन में से आम और ऋविष् वैदिक नाम होने के कारण लोक व्यवहार में से हट गये हैं, तब कुछ मांस के नये नाम भी प्रचलित हुए हैं।
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