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जिन महाशयों ने चौराहे पर गाय का मांस बेचने की बात कही है, उन्होंने वैदिकधर्म सूत्र और प्राचीन आर्य राजाओं के राज्यों की व्यवस्था बताने वाले अर्थशास्त्रों का नाम भी सुना नहीं होगा यह निश्चित है। अन्यथा किसी बौद्ध लेखक के निराधार उल्लेख को पढ़कर अथवा अन्य किसी भी कारण से ऐसा नितान्त असत्य लेख नहीं लिखते।
श्रीयुत धर्मानन्द कौशाम्बी, इनके पुरोगामी गोपालदासजी वा भाई पटेल, और डा० हरमन जेकोबी ने जैन सूत्रों में आये हुये कुछ उल्लेखों से जैन श्रमण आदि के सम्बन्ध में जो मांस-भक्षण की कल्पना की थी, उसके उत्तर में दो बातें लिखनी पडी हैं । उक्त विद्वान किस कारण से इस असङ्गत और असम्भाव्य बात को वास्तविक सत्य मानने को प्रेरित हुए उसके कारणों का स्पष्टीकरण अगले अध्याय में मिलेगा।
॥ इति ॥
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