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(११६ ) अर्थ-मृग पशुओं का, हड्डी बिना का मांस मारने के बाद तत्काल बेचा जाय । अगर हड्डी के साथ बेचे तो हड्डी के बजन के बराबर शुद्ध मांस अधिक दे। तौल में यदि कम दे तो जितना कम दे, उससे आठ गुणा दण्ड के रूप में दे। पशुओं में वृषभ ( बैल) बछड़ा और गाय ये तीनों अवध्य हैं। पशु के जोरों का प्रहार दे अथवा किष्ट प्रहारों से मारे तो उस कसाई से पचास पण (रुपया) वसूल किया जाय ।
फूगा हुआ, शिर पैर की अस्थि बिना का, गन्ध बदला और स्वयं मरे हुये का मांस न बेचे । इसके विपरीत चलने वाला बारह पण के दण्ड का भागी होगा।
कोटिल्य अर्थशास्त्र की उपयुक्त बातें 'सूना' ( कसाईखाना) चलाने वाले को उद्देश करके लिखी गई हैं । आज के सभ्यता मानी राज्यों के उन अधिकारियों को जो कसाईखानों के निरीक्षक हैं, उक्त बातों से बोध लेना चाहिए । पूर्व के सूनाघरों में ताजा
और दुर्गन्धि बिना का मांस बेचने का कसाइयों को अधिकार मिलता था। एक के नाम से दूसरे का मांस देकर धोखाबाजी न करे, इसलिए जिस पशु का मांस हो उसका शिर और पांव की हड्डी शामिल रखने की सूना घरवाले को हिदायत की जाती थी। मांस में हड्डी होती तो उसके बराबर मांस अधिक देना पड़ता था । कसाई अपने बांट खोटे रखता और तोल में मांस कम देता तो दण्ड के रूप में कम की तादाद से आठगुणा अधिक देना पड़ता था। सूना में जिन बध्य पशुओं का वध होता था उनमें बैल, बछड़ा और गाय अवध्य होते थे।
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