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जो द्विज शक्ति के अनुसार निरन्तर यजुर्वद को पढ़ता है, घह देवों का घृत तथा अमृत ( जल ) से और पितरों का धृत मधु से तर्पण करे। ___ जो द्विज सामवेद का निरन्तर अध्ययन करता है, वह देवों का सोम घृत से और पितरों का मधु धृत से तर्पण करें। ___ जो द्विज अथर्वाङ्गिर को निरन्तर पढ़त्ता है, वह देवों का बपा से और पित्तरों का मधु घृत से तर्पण करे ।
जो द्विज शक्ति के अनुसार नित्य अनुवाक वाक्य, पुराण नाराशंसी गाथा, इतिहास, और आन्वीक्षिक्यादि विद्यायें पढ़ता है, वह देवों को मांस, दृध, प्रोदन, मधु से और पितरों का मधु धृत से तर्पण करे।
वे देव तथा पितृ तृप्त होकर इस को सर्व शुभ काम फलों से तृप्त करते हैं, और वेद में जिस यज्ञ का अधिकार वह पढ़ता है, उस यज्ञ का वह फल प्राप्त करता है।
याज्ञवल्क्य के उपयुक्त निरूपग में अथर्वाङ्गिर पढने वाला पपा और अनुवाक, वाक्य, पुराण, आदि पढ़ने वाला भांस का देवताओं के तर्पण में उपयोग करता था। वेदत्रयी पढने वाले मधु घत दूध से देवों का तर्पण करते थे, और पितरों का तर्पण सभी मधु घत क्षीर आदि से ही करते थे। इस से भी स्पष्ट होता है कि याज्ञवल्क्य मांस भक्षण के हिमायती नहीं थे, किन्तु विधि बाक्यों के अनुरोध से वे यज्ञादि में पवङ्ग, वपा, मांसादि का
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