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छः को अर्घ्य मानते हैं तो दूसरे किन्हीं को, कोई एक किन्हीं को अर्घ्य मानते हैं, तो कोई दूसरे किन्हीं को परन्तु इन मत-भेदों से हमें कोई परिणाम नहीं निकालना है। इन उल्लेखों से हमें जो सारांश मिला है, वह यही है कि प्राचीन भारतवासी आतिथ्य सत्कार में बड़े तत्पर रहते थे, यों तो कोई मनुष्य आर्य भारतवासी के घर आता तो आतिथ्य सत्कार पाता था। परन्तु यहां मधुपर्क के सम्बन्ध में जो अर्घ्य कह गये हैं वे विशिष्ट प्रकार के मेहमान होते थे, उनके वर्ष या उससे अधिक समय के बाद अपने घर पर आने पर वैदिकधर्मी उनकी पूजा करते थे, जो प्राचीन परिभाषा में अर्घ्यदान कहलाता था। उनके लिये मिष्टान्न
आदि भोज्य पथार्थ तयार किये जाते थे, उनको मधुपर्क के नाम से उद्घोषित करते थे।
अयं और मधुपर्क का लक्षण बौधायन गृह्य सूत्रेः
“अथ यदुत्स्रक्ष्यन् भवति तामनुमन्त्रयते "गौधनुर्भव्या माता रूद्राणां दुहिता वसूनां स्वसाऽऽदित्यानांममृतस्य नाभिः । प्रणुवोचं चिकितुषे जनाय मा गाम मनागामदितिं वधिष्ट । पिक तूदकं तृणान्यत्तु । ओं ३ उत्सृजत इति ।।
तस्यामुत्सृष्टायां मेषमजं वाऽऽलभते ।
___ आरण्येन वा मांसेन । . नत्वेवाऽमांसोऽयः स्यात् । अशक्ती पिष्टान्न संसिध्येत् ।
प्र० प्र०अ०३-पृ०८
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