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"अथैते अर्ध्याः ऋत्विक श्वसुरः पितृव्यः मातुलः आचार्यो राजा वा स्नातकः प्रिय वरोऽतिथिरिति ।"
अर्थ-ऋत्विक , श्वसुर, चाचा, मामा, प्राचार्य, राजा, स्नातक, प्रिय (स्नेही) कुँबारा चर, और मान्य अतिथि इतने पुरुष अर्घ के योग्य हैं।
खादिर गृह्य सूत्र में मधुपर्क के अधिकारी :
"आचार्य-ऋत्विक , स्नातको-राजा-विवाह्यः- प्रिय इति पडाः "
अर्थः-आचार्य, ऋत्विक , स्नातक, राजा, विवाह्य ( कन्या परिणय करने वाला वर ) प्रिय, ये छः पुरुष मधुपके के अधिकारी हैं।
ज्यासस्मृति में मधुपर्क के अधिकारियों का निम्नोद्धत वर्णन है। "विवाह्य स्नातक क्ष्माभृदा-चार्यसुहत्विजः । अया भवन्ति धर्मेण, प्रतिवर्षे गृहागताः ॥४१॥
अर्थः-विवाह योग्य वर, स्नातक, राजा, आचार्य, मित्र, ऋत्विक , ये प्रतिवर्ष घर आने पर अर्घ्य के योग्य होते हैं।
उपर्युक्त भिन्न भिन्न ग्रन्थों में मधुपर्क के अधिकारी अर्ध्य पुरुष बताये हैं। उनमें मत भेद है, एक में पांच, तीन में छः और एक में देश की संख्या दी है। तीन ग्रन्थों में जो छः की संख्या दी है उनमें भी ऐकमत्य नहीं है। कोई किन्हीं
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