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जर्मनी के आर्यों की तरह भारतीय आर्य घोड़ा नहीं खाते थे, केवल घोड़ा ही नहीं एक शफजाति के सर्वप्राणी अभक्ष्य माने गये हैं और इनको खाने वालों के लिए वैदिकशास्त्रों में प्रायश्चित्त विधान किया गया है । इस परिस्थिति में भारतीय आर्यों के ऊपर घोड़ा खाने का आरोप देना अविचारपूर्ण है ।
पाकयज्ञ और हविर्यज्ञ
वैदिक शास्त्रकारों ने यज्ञों को सामान्यरूप से दो विभागों में बांट दिया है, जिनके नाम पाकयज्ञ और हविर्यज्ञ है ।
'सायं प्रातरिमों होमो स्थाली पाको नवश्च यः । बलिश्च पितृयज्ञश्चा - टकश्च सप्तमः स्मृतः ॥
अर्थ- प्रात और शाम के होम, नया स्थाली पाक, बलि, पितृपिण्ड, अष्टक और पशुयज्ञ ये पाकयज्ञ हैं ।
इत्येते पाकयज्ञाः
टिप्पणी- - १
क्रव्यादाञ्छकुनान् सर्वास्तथा ग्रामनिवासिनः । निर्दिष्टांश्चैकशफान, टिट्टिभं च विवर्जयेत् ॥ ११॥
अर्थः- सर्व प्रकार के मांस भक्षक पक्षी, तथा अनुक्त ग्राम्य पक्षी, एक शक अर्थात् एक खुरवाले सभी प्रकार के पशु और टिट्टिभ इनके भक्षण का त्याग करें ।
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