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इन बचनों से स्पष्टतया प्रतीत होता है कि तत्कालीन यज्ञ निरारम्भ होते थे। अन्न और सोम के अतिरिक्त अन्य कोई चीज देवता
ओं को नहीं चढायी जाती थी। ___ यज्ञ के अनेक नामों में अध्वर यह प्रथम नाम है, जिसका अर्थ होता है अहिंसक अनुष्ठान । इस विषय में निरुक्त भाष्यकार यास्क मुनि के निम्नोद्धत अवतरण पढिये।
"अध्वर इति यज्ञ नाम ध्वरति हिंसा कर्मा, ध्वरति धूर्वतीति हिंसार्थेषु पठितौ “तत्प्रतिषेधः अध्वरः "अहिंस्रः” इति ।"
अर्थात्-"ध्वर धातु” हिंसार्थक है ध्वरति अथवा धूर्वति ये धातु हिंसार्थक धातुओं में पढे गये हैं। उस हिंसा का जिसमें प्रतिषेध हो उसका नाम अध्वर अर्थात् अहिंसक अनुष्ठान है।
निरुक्त कार यास्क के इस निरूपण से ऋग्वेदकालीन यज्ञ हिंसा रहित होते थे, यह बात पूर्णरूप से सिद्ध हो जाती है।
___ सामवेद का संक्षिप्त स्वरूप निर्देश भारत वर्ष की सभ्यता का इतिहास लिखने वाले कहते हैं
"सामवेद के संग्रह करने वाले का कोई पता नहीं । डा. स्टिवेन्सन के अनुमान को प्रोफेसर वेन ने सिद्ध कर दिखला दिया है कि सामवेद की कुछ ऋचाओं को छोड़कर और सब ऋचायें ऋग्वेद में पाई जाती हैं । साथ ही इसके यह भी विचार किया जाता है कि बाकी की थोड़ी ऋचायें भी ऋग्वेद की किसी प्रति में
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