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गेहूँ और यव से लेकर अन्नमात्र से है । इसी तरह आजकल 'धान शब्द का अर्थ कम से कम बंगाल में चावल से है, पर ऋग्वेद में यह शब्द भूने हुए जौ के लिए आया है, जो कि भोजन के काम में आता था और देवताओं को भी चढाया जाता था।
ऋग्वेद में ब्रीहि चावल का उल्लेख नहीं है। हम लोगों को इन्हों अनाजों से बनी हुई कई तरह की रोटियों का भी वर्णन मिलता है जो खाई जाती थी, और देवताओं को भी चढाई जाती थी। 'पक्ति' ( पच-पकाना ) का अर्थ है 'पकी हुई रोटी।' इसके सिवाय कई दूसरे शब्द जैसे पुरोदास ( पुरोडाश) 'अपूप' और 'करम्भ' आदि भी पाये जाते हैं।'
('प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास'
पहिला भाग प्रक० वैदिककाल १ काण्ड ) ऊपर हमने वेदाभ्यासियों के अभिप्राय का संक्षिप्त विवरण दिया है, उससे सहमत होते हुए भी तदन्तर्गत कुछ बातों के सम्बन्ध में हम अपना मतभेद प्रदर्शित करते हैं। वेदानुशीलक विदेशी विद्वानों ने प्रार्यों तथा आदि निवासियों के विषय में जो अपने विचार प्रदर्शित किये हैं, वे यथार्थ नहीं । उनका कहना है, भारत में पहले सभी काले लोग रहते थे जो यहाँ के मूल निवासी थे, आर्य लोग मध्य एसिया से आकर भारत में घुसे और पञ्जाब के भूमिभाग तक अपना अधिकार जमा बैठे परन्तु वस्तु स्थिति ऐसी नहीं है । भारत के जो आदि निवासी कहलाते थे और वे समभूमि तल पर अपने राज्य जमाकर रहते थे, उनके साथ कभी
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