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________________ [ ५३ ] ३ - स्नान' ए जन्मकालमां इंद्रोद्वारा थयेल जन्माभिषेकनुं प्रतीक गणातुं, एना प्रसंगे सेंकडो साधु-साध्वी अने हजारो भाविक गृहस्थो सेंकडो कोशोथी खेंचाईने दर्शनार्थे आवता अने आजे १ प्रक्षालन थई अंगलूंछणां थाय तेनी प्रतीक्षामां भक्तो बहार ऊभा रहे छे. आजना नित्यस्नानमां कई ज भावना जेवुं रधुं नथी. जेम वैष्णव धर्मिओमां 'स्नान' ए गृहस्थना नित्यकृत्योमां परिगणित छे ते ज प्रमाणे आजे आपणी ' प्रतिमाओना ' प्रशालने ' एक नित्यकृत्य 'नुं रूप लीधुं छे, बाकी एमां कई ज सजीवता रही नथी. ४ - पहेलां प्रत्येक जैन उपासकना घरमा मंगलचैत्य रहेतुं. सवारना उठी शुद्ध थई ते मंगलचैत्थनी गंध पुष्पादिवडे पूजा करतो अने ते पछी नगरस्थित भक्तिचैत्यमां जई भगवानने पूजतो. नित्य प्रक्षालन अने तिलकनी उपाधि वधतां तेवां मंगलचैत्यो ( घर मंदिरो ) नो व्यवहार आजे नामशेष थई गयो छे. " ५- पूर्वे जिनमंदिरोमां पूजा भक्तिनुं कार्य श्रावको पोते ज करी लेता हता. प्रत्येक जिनचैत्यनी देखरेख, व्यवस्था अने सेवाभक्तिने माटे गोष्ठी - मंडलो हतां अने तेना सभ्यो गौष्ठिक' कहेवाता. आजे प्रत्येक जिनचैत्यनी पूजा - भक्ति माटे पगारदार गोठी राखवो पडे छे. जल लाववुं चंदन घसवु, पखाल करी अंग लुछवा, अंगलूछणां धोवां, पूजानां बर्तनो धोत्रां मांजवां इत्यादि अनेक कार्यो नित्यस्नाननी पाछल वध्यां एटले पगारदार नोकरो राखवानी आवश्यकता ऊभी थई. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003118
Book TitleJina Pooja Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1957
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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