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ब्राह्मण ऋषिओनो एवो विश्वास हतो के कोई पण देवने संतुष्ट करवानो उपाय अग्निहोत्र छे, ते ते देवने उद्देशीने तदिष्ट पदार्थ अग्निमां होमवाथी तेने पहोंचे छे अने ते देव तेने अनुकूल थाय छे. आवी मान्यताना परिणामे ज आ संस्कृतिना ब्राह्मण ग्रंथोमां " अग्निमुखा वै देवाः" आवा प्रघोषो लखाणा, एटलुंज नहिं पण प्रत्येक वैदिक संस्कृतिना पूजक द्विजाना घरोमा 'अग्नित्रयीना कुंडो' अने 'अग्निचित्या' गृहो राखवाना उपदेशो थया. ____ जैन संस्कृतिना प्रचारको कहेता 'आत्मानुं दमन करो, संसारमा आत्मा ज दुर्दम छे, दान्त आत्मा ज आ लोक तेम परलोकमां सुखी थाय छे.'* आवा उपदेशो उपर विश्वास राखनाराओ आत्मविजयार्थ विविध तपस्याओ करता, विषयोपभोगोनो त्याग करी, इन्द्रियदमननी अनेकविध प्रवृत्तिो करता. आ संस्कृतिना आद्य प्रवर्तक तीर्थकरो 'जिन' नामथी पण ओळखाता हता. तीर्थंकरोतुं 'जिन' ए नाम एमना विजयने सूचवनारुं छे. कर्म-कषायोने जीतीने आत्मैश्वर्य प्राप्त करनारा आ जिनोने मनुष्यो तो शुं स्वर्गना इंद्रो सुधां पोतानां मस्तको नमावता, एमना उपदेशामृतनुं पान करता अने एमर्नु दास्य स्वीकारता * अप्पा चेव दमेयव्वो, अप्पा हु खलु दुद्दमो ।
अप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य !!
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