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[३१] सामाचारीओ नवी बनावीने पोताना गच्छो व्यवस्थित कर्या अने परंपरा जुदी चलावी. प्रारंभमां आ नवा गच्छो मूल परंपराथी बहु दूर नहोता गया छतां कालक्रमे अंतर वधतुं ज गजु जे आज पर्यन्त केटलाक गच्छो तो बहु ज छेटे पडी गया छे, केटलाकनुं अन्तर मौलिक रूपमां तो नजीवू ज छ पण आगल करतां वध्युं छे, जे उदार भावना प्रकटे तो दूर करी शकाय तेम छे. गमे तेम पण चैत्यवासियोना खंडन दर्मियान केटलीक एवी परंपराओनुं पण खंडन थयुं छे के जे ठेठ पूर्वधरोना समयनी प्रामाणिक परंपराओ हती. भले चैत्यवासना पतनकाल पछी जीर्णोद्धार थया हशे पण ते संघर्ष कालथी संघy बंधारण जे तूटधुं छे तेनो आज सुधी उद्धार थयो नथी अने निकट भविष्यमां तेवी आशा पण नथी.
आ चैत्यवासना इतिहासमुं प्रकरण अत्र चर्चानो मूल हेतु ए छ के-आपणी "जिन पूजापद्धति "मां विकृतिनां बजि आ कालमा रोपाणां हतां. चैत्यवासी आचार्योनो घणो भाग चैत्योमा रहेतो एटलं ज नहिं पण चैत्योना गौष्टिक मंडलोना प्रमुख तरीकेनी फरजो बजावतो, एमनी इच्छानुसार
चैत्योनी व्यवस्था थती अने पूजा आदिनी व्यवस्था पण तेमना मतानुसार थती, जो के नित्यस्नान जेवी अंतिम कोटिनी विकृति तो ते समयमां पण दाखल न थई पण " सर्वोपचारी पूजा" नी अतिप्रवृत्ति तेमणे ज वधारी हती के जेना परिणामे बारमी सदीमां चैत्यवासियोनी साथे
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