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मार्गमा अति शैथिल्य आवतां गृहस्थवर्गनो आदर घटयों हतो अने बीजी तरफ सुविहितोनी संख्या वधती जती हती, चैत्यवासनां उतरतां पाणी थई चूक्यां हतां, तो पण चैत्यवासियो त्यांसुधी तद्दन निर्माल्य नहोता वन्या. द्रोणाचार्य, पूराचार्य, थारापद्रगच्छीय शांतिसूरि जेवा प्रौढ प्रतापी विद्वान् चैत्यवासी आचार्यो दशमी शताब्दी पछीना समयमां पण पोताना नामे ओळखाता हता एटलुंज नहीं पण शासनना स्तंभ जेवा समजीने सुविहित आचार्यों पण एमनो आदर करता हता.
उपर जणावेल चैत्यवासनी प्रधानतावालां पांचसो वर्षों जो के जैनाचारनी दृष्टिए पतनकालना हतां छतां आ समयमां जेटला विद्वानो पाक्या छ तेटला कालान्तरमा नथी पाक्या अने आ समयमां जेटलुं मौलिक जैन साहित्यन निर्माण थयुं छे तेटलुं बीजा समयमां भाग्ये ज थयुं हशे. सिद्धसेन दिवाकर, मल्लवादी, पादलिप्त जेवा प्रभावको, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, जिनदासगणि महत्तर जेवा भाष्य-चूर्णिकारो, सिद्धसेन गणि, याकिनीमहत्तरासूनु हरिभद्रसूरि, शीलांकाचार्य जेवा प्रसिद्ध ग्रन्थकारो आ समयनां तेजस्वी रत्नो छे. दिगम्बर संप्रदायमां आ समयमां जेटला विद्वानो थया छे अने ग्रन्थो रचाया छे तेटला बीजा कालमां रचाया नथी.
श्रीपादलिप्तमूरिजीनी प्रतिष्ठापद्धति (निर्वाणकलिका),
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