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[ २७ ] चैत्यो अने जिनबिंबो बतावेल छे अने स्थाननो स्वामी नवो उत्पन्न थाय छे त्यारे चैत्यमां जाय छे अने प्रतिमाने पूजे छ पण शेष समयमा चैत्यस्थित शाश्वत बिंबोनी पूजा कोण करे छे? एनो खुलासो शास्त्र आपतुं नथी. आथी आपणे शुं समजवू जोईए ? आपणे समजबुं जोईए के आपणी प्राचीन पूजापद्धति आजना जेवी न हती, ते साची अने स्वाभाविक हती. आजनी पद्धतिमां कृत्रिमतानां बंधनो छे, भावना स्थाने फरज-कर्तव्यनी कडिओ संकलायेली छे एटले पूजकनी आत्मिक भावनाओनो विकास थई शकतो नथी. आ पवित्र कार्यथी जे लाभ थवो जोईए ते थतो नी केमके तेनी भावनाओने विमुक्त पक्षीनी जेम उड़वानो अवकाश मळतो नथी. ३-जिन पूजापद्धतिमा विकृतिनां बीजारोपण
सर्वोपचारी पूजाना प्रचारनी साथे पूजाना विकासनी अंतिम सीमा हती अने ए पर्वगत कृत्यपर्वोमां ज मर्यादित रहेQ जोईतुं हतुं पण तेम रही शक्युं नहिं, समय ज एवो हतो, एक तरफ पौराणिक पद्धतिनां पगरण मंडायां हतां, बीजी तरफ जैन श्रमणो जे घणे भागे बन-उद्यानोमां रहेता हता ते धीरे धीरे वसतिवासी थई रह्या हता, वसतिमां मकानोनो तोटो पडवा मांडयो एटले नवां बनता जिनचैत्योनी हदमांज साधुओने रहेवा योग्य स्थानो बनावीने श्रमणोने माटे राखवा मांडयां. आ स्थानोथी उतरवानी समस्या घणे भागे पूरी थई गई छतां जे त्यागी श्रमणो आधाकर्मिक जाणी
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