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[ १९ । त्यारे बीजीमां द्रव्य गौण बनी ते भाव प्रधान बने छे. आ कारणे बंने पूजाओ जुदी मानेली छे. प्रथम द्रव्यपूजा गृहस्थने योग्य छे, अने ते पण तथाप्रकारना भावभेदोर्थी त्रण प्रकारनी होय छे. कायिक, वाचिक, मानसिक विशुद्धिसंभृत उपकरणोना भेदे, तेमां कायप्रवृत्ति प्रधान प्रथम पूजा सर्वाधिक विषयवाली होय छे एटले के आ प्रथम पूजाना अधिकारीओ सर्वथी अधिक होय छे. आ पूजामा पोतानी उत्तम वस्तु देवने अर्पण करीने संतुष्टि प्राप्त करवानी भावना मुख्य होय छे. आ पूजामां शारीरिक प्रवृत्तिनी प्रधानता होय छे. ए पूजानुं नाम ग्रन्थकारोए 'समंतभद्रा' आपलं छे. बीजी पूजानुं नाम 'सर्वमंगला' छे. आ पूजा वचनक्रियाप्रधान होय छे. प्रथम पूजामा अर्पण कराती वस्तुओने विषे
औचित्यनो विचार करी प्रेष्यादिद्वारा मंगावीने पूजामां तेनो प्रयोग करवो. आ भेदथी पहेलीथी आ बीजी पूजा जुदी पडे छे. त्रीजी द्रव्यपूजानुं नाम छ ' सर्वसिद्धिफला' आ पूजामां उत्तम तत्चर्नु चिन्तन कराय छे, पूजा योग्य सर्वोत्तम वस्तुनी गवेषणामां मनने जोडे छे, आ पूजामां शुद्ध मनोयोगनी प्रधानता होय छे. आ तृतीय पूजा नाम प्रमाणे सर्व प्रकारे सिद्धिफल आपनारी छे. आ पूजामां कायिक प्रवृत्तिओ अने वाचिक आदेशो बंध थई जाय छे अने मानसिक शुभ भावनाओनी प्रधानता होय छे.
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