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________________ [९ ] वीतवा आव्यो हतो, अने पांचमा दुःषमारकनी छाया निकट आवी रही हती. संध्याकालमां थता प्रकृतिपरिवर्तननी जेम ए महाकालनी संध्यामां विशेष रीते प्रकृति-विपर्यास वधतो गयो. क्रोधादि कषायोनी विशेष वृद्धि थती गई, जनमनो रागद्वेषे प्रचुर थतां गयां, कालवर्षी मेघो अकालवर्षी थया, वृष्टिनी अल्पता तथा अनियमितताना कारणे धान्य संपत्ति घटी, गोधन घटयु, दुर्भिक्ष-ईति-उपद्रवो वधतां जनवसतिओ उजडती गई, राज्योनी आवको घटवा मांडी अने राजाओ उद्विग्न थईने वर्णश्रेट अने विद्यापारीण एवा ब्राह्मण-ऋषिओने शरणे गया अने आ विषम कालजन्य परिस्थितिथी बचवाना उपायो पूछया, जेना उत्तरमा ब्राह्मणोए भिन्न भिन्न संकटोमांथी पार उतरवा भिन्न भिन्न अभिचार प्रयोगो-मंत्रानुष्ठानो-नी सृष्टि करी के जेनो संग्रह कालान्तरे 'अथर्ववेद' नामथी प्रसिद्ध थयो. आम मूल वैदिक संस्कृतिना पतननो आरंभ आ अथर्ववेदना प्रादुर्भाव पछी थयो के जेनो समय २५०० वर्ष पहेलांनो छे. वैदिक धर्मिओमां ते पहेलां हिंसायज्ञो जटिल अनुष्ठानो जेतुं कई हतुं नहिं, अग्निपूजा विना एमना घरोमां बीजा कोईनी पूजा हती नहिं, पण ते पछी धीरे धीरे काम्य यज्ञानुष्ठानो वध्यां, अभिचारप्रयोगो वध्या एटलं ज नहिं पण वैदिक देवोनां स्थानो शनैः शनैः रुद्रो, स्कंदो, यक्षो, भूतो अने ए ज प्रकारना अन्य जघन्य देवोए ग्रहण कया. जो के विद्वान् ब्राह्मण वर्ग ए अति प्रवृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003118
Book TitleJina Pooja Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1957
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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