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________________ सत्यम् - साहित्य एक ऐसी विधा है, जिस पर जितना श्रम किया जाए उतना ही लाभ है । स्वयं का ही नहीं, दूसरों का लाभ इसमें ज्यादा निहित है, पर श्रम करना कितना कठिन है ! वह भी पूरे मनोयोग से करना और भी कठिन है। मैंने अपना साहित्य लिखा या लिखाया, उस समय ऐसी कोई कल्पना नहीं की थी कि इस साहित्य का इतना मंथन किया जाएगा, पर नियति है कि इस साहित्य पर इतना मंथन हुआ है। समणी कुसुमप्रज्ञा दुबली-पतली है, पर बड़ी श्रमशील है। वह श्रम करती अघाती ही नहीं, करती ही चली जाती है। उसने कुछ ऐसे अपूर्व ग्रन्थ तैयार कर दिए हैं, जो युग-युगान्तर तक लाखोंलाखों लोगों के लिए लाभकारी एवं उपयोगी सिद्ध हो सकेंगे। 'एक बंद : एक सागर' (पांच खंडों में) एक ऐसा ही सक्ति-संग्रह है, जिसकी मिशाल मिलना मुश्किल है। यह दूसरा ग्रन्थ तो और भी अधिक श्रमसाध्य है । इसमें समूचे साहित्य का अवगाहन कर उसको विषयवार वर्गीकृत कर दिया गया है। इसके माध्यम से सैकड़ों शोध-विद्यार्थी आसानी से रिसर्च कर सकते हैं। समणी कुसुमप्रज्ञा श्रम के इस क्रम को चालू रखे । केवल यही नहीं, अध्यात्म के क्षेत्र में जितनी गहराई में उतर सके, उतरने का प्रयत्न करे । हमारे धर्मसंघ की सेवा का जो अपूर्व अवसर मिला है, उससे वह स्वयं लाभान्वित हो तथा दूसरों को भी लाभान्वित करे । समणी उभयथा स्वस्थ रहे, यही शुभाशंसा है। मागचा जयपुर २५-३-९४ शुक्रवार अणुव्रत अनुशास्ता गणाधिपति तुलसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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