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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
कथाओं में साहित्यिक शैली नहीं है पर दिल तक पहुंचकर बात कहने की शक्ति है इसलिए ये जनभोग्य हैं । आज की सस्ती कथाओं के सामने आचार्य तुलसी ने इन कथाओं के माध्यम से एक आदर्श प्रस्तुत किया है ।
इतना अवश्य है कि उन्होंने गद्य में स्वतंत्र कथा लेखन कम किया है । प्रवचनों में विषय को स्पष्ट करने के लिए ही कथाओं का आश्रय लिया है । कहीं कहीं विषय की गंभीरता एवं जटिलता को सरस बनाने हेतु कथाओं का उपयोग हुआ है । काव्य साहित्य में उन्होंने अनेक कथाओं को अपनी रचना का आधार बनाया है तथा उन कथाओं को अपनी कल्पना के रंग में रंगकर कमनीय एवं पठनीय बना दिया है। जैन कथाओं को काव्य के माध्यम से प्रस्तुति देकर आचार्य तुलसी ने उन कथानकों को प्राणवान् बनाया है । 'चंदन की चुटकी भली' काव्यकृति में १८ आख्यानों का संकलन है । संक्षेप में उनकी कथा में प्रेमचन्द की सहजता, प्रसाद की भावुकता, जैनेन्द्र की मनोवैज्ञानिकता एवं अज्ञेय की समाज-सुधार दृष्टि का सुन्दर समन्वय हुआ है ।
संस्मरण
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साहित्य की सबसे अधिक जीवन्त रोचक और मधुर विधा है-संस्मरण । क्योंकि न इसमें भाषा की दुरूहता होती है और न अति कल्पना लोक में विचरण । घटना प्रधान आकलन होने से यह साहित्य की सरस विधा मानी जाती है, जो पाठक पर सीधा प्रभाव डालती है । डा० त्रिगुणायत इसे परिभाषित करते हुए कहते हैं- " भावुक कलाकर जब अतीत की अनंत स्मृतियों में से कुछ रमणीय अनुभूतियों को अपनी कोमल कल्पना से अनुरंजित कर व्यञ्जनामूलक शैली में अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं से विशिष्ट बनाकर रोचक ढंग से यथार्थ रूप में व्यक्त करता है, तब उसे संस्मरण कहा जाता है ।"
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संस्मरण गद्य की आत्मनिष्ठ विधा है पर उसमें सचाई की सौरभ होती है । आचार्य तुलसी समय-समय पर अपने संस्मरणों को अभिव्यक्ति देते रहते हैं पर पिछले डेढ़ साल से वे इस विधा में अनवरत लिख रहे हैं । बचपन से लेकर आचार्यपदारोहण तक के संस्मरणों का सुंदर आकलन किया जा चुका है । वे संस्मरण साप्ताहिक केन्द्रीय विज्ञप्ति के माध्यम से प्रकाशित हो चुके हैं । इन संस्मरणों में भाषा का जाल नहीं, अपितु आत्माभिव्यक्ति है । अतः ये सहज, सरल, सुबोध और आकर्षक हो गए हैं। इन संस्मरणों को पढ़कर पाठक यह अनुभव करता है कि आचार्य तुलसी बीते क्षणों को पुनः जीने का सशक्त उपक्रम कर रहे हैं तथा पाठक को भी अतीत के प्रेरक क्षणों से साक्षात्कार करने का अवसर मिल रहा है। यहां हम उनके मुनि जीवन में गुरु के अपार वात्सल्य का एक संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं
"मैं जब कभी अस्वस्थ होता, पूज्य गुरुदेव की कृपा इतनी अधिक
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