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________________ आचार्य तुलसी ने अपने साहित्य में सामाजिक जीवन के उस पक्ष को प्रकट करने की कोशिश की है, जो नहीं है पर जिसे होना चाहिए। वे इस बात को मानकर चलते हैं कि साहित्यकार मात्र छायाकार या अनुकृतिकार नहीं होता, वह स्रष्टा होता है। स्रष्टा होने के कारण अनेक संघर्षों को झेलना उसकी नियति होती है। वह समाज के एक-एक घटक के जीवन से ओत-प्रोत हो कर उसकी सारी समस्याओं को आत्मसात् कर अपने साहित्य में उन सभी समस्याओं का सटीक समाधान प्रस्तुत करता है। साहित्यकार विषपायी होता है, पर अमृत उगलता है। आचार्य तुलसी ने यही किया है इसलिए उनके साहित्य में जीवन्त तत्त्वों का बाहुल्य है। समणी कुसुमप्रज्ञा Jain Education International For Private & Pe
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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