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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन ३. न स्वयं व्यथित बनो, न दूसरों को व्यथित करो।
कई शीर्षक प्रश्नवाचक हैं, जो पाठक को सोच की गहराई में उतरने को विवश कर देते हैं, जिससे पाठक अपने परिपार्श्व का ही नहीं, दूरदराज की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में भी समाधान प्राप्त करता है
० कैसे मिटेगी अशांति और अराजकता ? ० कौन करता है कल का भरोसा ? ० क्या आदतें बदली जा सकती हैं ? ० क्या है लोकतंत्र का विकल्प ?
इस प्रकार प्रायः शीर्षक विषय से संबद्ध तथा रोचक हैं । कथा
साहित्य की सबसे सरस एवं मनोरंजक विधा है-कथा । बहुत विवेचन एवं विश्लेषण के बाद भी जो अकथ्य रह जाता है, उसे कथा बहुत मार्मिकता से प्रकट कर देती है अतः प्राचीन काल से ही कथा के माध्यम से गूढतम रहस्य को प्रकट करने का प्रयत्न होता रहा है। वेद, उपनिषद्, महाभारत तथा आगमों में आई कथाएं इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है । बाण ने कथा की तुलना नववधू से की है, जो साहित्य-रसिकों के मन में अनुराग उत्पन्न करती है। कादम्बरी में वे कहते हैं
"स्फुरत् कलालापविलासकोमला, करोति रागं हृदि कौतुकाधिकम् । रसेन शय्या स्वयमभ्युपागता, कथा जनस्याभिनवा वधूरिव ॥
प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्रजी का मानना है कि साहित्य के माध्यम से डाले जाने वाले जितने प्रभाव हो सकते हैं, वे कथा विधा में अच्छी तरह उपस्थित किये जा सकते हैं । चाहे सिद्धान्त प्रतिपादन अभिप्रेत हो, चाहे चरित्र चित्रण की सुंदरता इष्ट हो, चाहे किसी घटना का महत्व निरूपण करना हो अथवा किसी वातावरण की सजीवता का उद्घाटन ही लक्ष्य हो या क्रिया का वेग अंकित करना हो या मानसिक स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण करना होसभी की अभिव्यक्ति इस विधा द्वारा संभव है। कहानी की कला इसी बात में प्रकट होती है कि संक्षेप में सीधी एवं सरल बात कहकर अपने कथ्य को पाठक तक पहुंचा दिया जाए। एडगर एलेन आदि पाश्चात्य विद्वानों का मानना है कि कथा ऐसी गद्यकला है जिसको घटने में आधा घंटा से दो घंटे तक के समय की आवश्यकता रहती है। प्रेमचंद का मानना है कि वह ध्रुपद की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा दिखा देता है । एक क्षण में चित्र को इतने माधुर्य से परिपूरित कर देता है कि जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता।' १. साहित्य का उद्देश्य पृ० ३७-३८
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