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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन जाती है । 'बूंद-बूंद से घट भरे' 'मंजिल की ओर' तथा 'प्रवचन पाथेय' आदि पुस्तकों के प्रवचनों को इस कोटि में रखा जा सकता है। निबंधों में प्रयुक्त शैली निबंध व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है। हर व्यक्ति की अपनी अलग शैली होती है । रामप्रसाद किचलू कहते हैं कि किसी निबंधकार की शैली सागर सी गंभीर, किसी की उच्छल तरंगों सी गतिशील एवं किसी की धुंआधार यौवन सी रंगीली एवं सलोनी सुरभि बिखेरकर सुबक-सुबक खो जाने वाली होती है।' निबंध में मुख्यतः पांच शैलियों का प्रयोग होता है१. समास २. व्यास ३. धारा ४. तरंग ५. विक्षेप । आचार्य तुलसी के निबंधों में स्फुट रूप से पांचों शैलियों के दर्शन होते हैं। कहीं वे समास शैली में अभिव्यक्ति देते हैं तो कहीं व्यास शैली में पर इन दोनों शैलियों में भी उनकी सारनाही प्रतिभा का दर्शन पाठक को प्रायः मिल जाता है । जहां भाव प्रधान निबंध हैं, वहां धारा, तरंग एवं विक्षेप शैली का निदर्शन भी उनके साहित्य में मिलता है। आचार्यश्री की शैली में वैयक्तिकता, भावनात्मकता, सरसता, सरलता, सहजता एवं रोचकता के गुण प्रभूत मात्रा में विद्यमान हैं। कहीं-कहीं व्यंग्य का पुट भी दर्शनीय है । कहा जा सकता है कि उनके व्यक्तित्व की सजीवता एवं जीवटता उनके निबन्धों में भी समाविष्ट हो गई है अतः उनकी शैली उनके व्यक्तित्व की छाप से अंकित है। यही कारण है दीप्ति, कांति, भव्यता एवं विशदता आदि गुण सर्वत्र दृग्गोचर होते हैं । निबंधों के शीर्षक शीर्षक किसी भी निबंध का आईना होता है, जिसमें से निबंध की विषय वस्तु को देखा जा सकता है । प्रायः शीर्षक पढ़कर ही पाठक के मन में निबंध लेख पढ़ने की लालसा उत्पन्न होती है अतः पाठक की उत्कंठा उत्पन्न करने में शीर्षक का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।। आचार्य तुलसी के निबंधों और लेखों के प्रायः शीर्षक इतने जीवन्त, आकर्षक और रोचक हैं कि शीर्षक पढ़ते ही उस निबंध को पूरा पढ़ लेने की सहज ही इच्छा होती है । जैसे-१. “एक मर्मान्तक पीड़ा : दहेज" २. "धार्मिक समस्याएं : एक अनुचिंतन" ३. “संतान का कोई लिंग नहीं होता" आदि । उनका साहित्य अनेक हाथों से संपादित होने के कारण उसमें शीर्षक, भाषा आदि दृष्टियों से वैविध्य होना बहुत स्वाभाविक है। कहीं कहीं एक ही लेख भिन्न भिन्न संपादकों द्वारा संपादित पुस्तक में भिन्न-भिन्न शीर्षक से आया है। १. आधुनिक निबंध पृ० ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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