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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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अतः पाठक के साथ उनका सीधा तादात्म्य स्थापित हो जाता है । सादगी, संयम एवं त्याग से मंडित उनका व्यक्तित्व इन निबंधों में सर्वत्र उपस्थित है, अतः ये उच्च कोटि के निबंध कहे जा सकते हैं । डा० जानसन या क्रेबल के सामने यदि ये निबंध रहते तो संभव है उन्हें निबंध के बारे में अपनी परिभाषा बदलनी पड़ती । उनके निबंधों की आलोचना इस रूप में की जा सकती है कि उनमें पुनरुक्ति बहुत हुई है पर ऐसा होना अनिवार्य था क्योंकि किसी भी धर्मनेता को समाज में परिवर्तन लाने के लिए बार बार अपनी बात को कहना पड़ता है और तब तक कहना होता है जब तक कि पत्थर पर लकीर न खिच जाए, पानी बर्फ के रूप में न जम जाए या यों कहें कि व्यक्ति या समाज बदलने की भूमिका तक न पहुंच जाए ।
निबंध की विकास-यात्रा
निबंध की विकास-यात्रा को विद्वानों ने चार युगों में बांटा है -- (१) भारतेन्दु युग (२) द्विवेदी युग (३) प्रसाद युग ( ४ ) प्रगतिवादी युग । कुछ विद्वान् अंतिम दो को क्रमशः शुक्ल युग एवं शुक्लोत्तर युग के नाम से भी अभिहित करते हैं । भारतेन्दु युग भारतीय समाज के जागरण का काल है । उन्होंने अपने निबंधों में धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक समस्याओं को उजागर किया है । महावीरप्रसाद द्विवेदी के निबंध विचार प्रधान हैं । साथ ही उन्होंने निबंध में भाषा-संस्कार पर भी अपेक्षित ध्यान दिया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंध नए विचार, नयी अनुभूति एवं नवीन शैली के साथ पाठकों के समक्ष उपस्थित हुए हैं अतः उनके युग में विचारप्रधान, समीक्षात्मक एवं भावात्मक निबंधों का चरम विकास हुआ ।
शुक्लोत्तर युग में हजारीप्रसाद द्विवेदी, जैनेन्द्रकुमार, डा० नगेन्द्र, अमृतराय नागर, महादेवी वर्मा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । आचार्य तुलसी के निबंध विचारों की दृष्टि से इन विद्वानों की तुलना में कहीं कम नहीं उतरते हैं ।
मेरे अपने विचार से तो निबंध का अगला अर्थात् पांचवां युग आचार्य तुलसी का कहा जा सकता है, जिन्होंने साहित्य में व्यक्तित्व रूपान्तरण की चर्चा करके भारतीय संस्कृति को पुनरुज्जीवित करने का प्रयत्न किया है । तथा बेहिचक आज की दिशाहीन राजनीति, धर्मनीति, एवं समाजनीति की दुर्बलताओं की ओर इंगित करते हुए उन्हें परिष्कार के लिए नया दिशादर्शन दिया है । आचार्यश्री के निबंध में रूक्षता एवं शुष्कता के स्थान पर रोचकता एवं सहृदयता का गुम्फन प्रभावी है ।
निबंध के भेद
यद्यपि विषय की दृष्टि से विद्वानों ने निबंध के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक
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