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________________ परिशिष्ट २ ३०३ जैन दर्शन की भूमिका पर अनेकांत' ३ दिस० ५३ जैन धर्म की महत्ता ३ मई ८१ जैन धर्म के दो चरण : अहिंसा और साम्य १५ अग० ७१ जैन धर्म पुरुषार्थ प्रधान है ___ मई ६९ जैन धर्म में व्यक्ति का नहीं, गुण का महत्त्व है २८ सित० ५८ जैन युवकों से जुलाई ५२ जैन शासन एक शृखला में आबद्ध हो २४ जन० ६५ जैन समाज एकत्व के धागे में बंधे' २७ सित० ६४ जैन समाज के लिए तीन सुझाव ६ दिस० ६४ जैनों का कर्तव्य ९ जून ६३ जैनों की संख्या २५ अग० ६८ जैसा करो, वैसा कहो २५ जून ६१ जो समता को नहीं खोता, सही माने में वही योगी है १८ अप्रैल ७१ ज्ञान अत्यंत आवश्यक है १८ मई ६९ ज्ञान का उद्भवः १३ अप्रैल ६९ ज्ञान का फल २० अप्रैल ६९ ज्ञान : दिव्य चक्षु १३ अग० ७२ ज्ञान प्रकाशकर है १० नव० ५७ ज्ञान प्रकाशप्रद है १४ अक्टू० ६२ ज्ञान प्राप्ति का सार २६ जुलाई ६४ ज्वलंत अहिंसा २९ अग० ५४ तट पर सजगता २६ अक्टू० ६९ तत्त्वज्ञान २६ अग० ५६ तप के बिना आत्मिक प्रभुता संभव नहीं वि० ९ अग० ५१ तपस्या का महत्त्व ५ अक्टू० ६९ तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ २६ अक्टू० ५८ तीन चेतावनी नव० ६९ तीन शक्तियां और तीन अंकुश ५ जुलाई ७० तीर्थंकर महावीर का अनेकान्त और स्याद्वाद दर्शन १४ अक्टू० ७९ १. २९-९-५३ जोधपुर, ४. ४-७-६७ अहमदाबाद २. पट्टोत्सव के अवसर पर ५. पर्युषण पर्व ३. ३-७-६७ अहमदाबाद ६. २९-८-६७ अहमदाबाद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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