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________________ परिशिष्ट २ जन-जन का मार्गदर्शक: अणुव्रती संघ जन-जन से जनतंत्र की सफलता कैसे ? जनतंत्र ही अहिंसक हो सकता है। जनता से दो बातें जननेता स्वार्थवृत्ति का त्याग करें जनमानस बदले जन्म और मृत्यु : दो अवस्थाएं जब भगवान् भक्तों पर हंसते हैं जय-पराजय जयाचार्य की साहित्य साधना' जहां द्वन्द्व है, वहां दुःख है जहां परिग्रह, वहां लड़ाई जागरण का रहस्य जातिभेद कृत्रिम है। जिन खोजा तिन पाइया जीने की कला जीवन : एक अमूल्य निधि जीवन और लक्ष्य जीवन और सम्यक्त्व * जीवन का ध्येय : संयम की साधना जीवन का मूल्य समझें जीवन का लक्ष्य जीवन का सच्चा विकास आत्म शुद्धि में है जीवन का सर्वांगीण विकास शिक्षा का उद्देश्य जीवन की दुर्गति : क्रोधमान आदि जीवन की दो धाराएं जीवन की पवित्रता जीवन की सार्थकता " १. ४-७-६५ दिल्ली । २. ९-२-८१ । ३. १०-१२-६८ मद्रास । Jain Education International ३०१ ७ मार्च ५४ वि० १८ सित० ५२ ५ जून ६६ २८ नव० ६५ १० जन० ५४ १८ जुलाई ६५ २५ नव० ७३ १९ जुलाई ५९ २६ मई ६२ For Private & Personal Use Only ३ अग० ६९ १ मार्च ८१ ७ सित० ६९ ७ नव० ६५ ९ फर० ६९ २५ मई ६९ ११ अक्टू० ७० २६ अक्टू० ६९ / ४ जन० ७० ३० मई ७१ २५ दिस० ६६ १२ जुलाई ७० २४ मई ५९ १० जून ७९ ९ अग० ६४ ७ मार्च ७१ ५ मई ७९ १५ अक्टू० ७२ १ दिस० ६३ २४ अप्रैल ६९ २० जुलाई ७१ ४. १९-९-६७ अहमदाबाद । ५. १८-७-७० रायपुर www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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